Shri R.S PARIHAR

मेरी पहचान हैं- आप
"सुख दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ" 2/38
सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय को समान समझकर -धर्मानुसार कत्तव्यपथ पर अग्रसरित रहकर कर्म को ही सर्वेपिरि मान‌ने वाले परिहार साहब सर यानी मेरे पिता के साथ-साथ मेरे गुरु भी है और एक मार्गदर्शक भी ।
सर्वप्रथम में अपने अनुज डॉ. राघवेन्द्र सिंह परिहार को स्मरण कर पापा के दुख को सहन करने की शक्ति का प्रमाण देना चाहूँगी; आकस्मिक मृत्यु पर पूरा परिवार असहनीय दुख की घड़ी में डूबा हुआ था। चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार दिखाई दे रहा था , उस समय परिहार साहब के शब्द थे - "जिसने दिया था, उसने ले लिया" क्योंकि उन्हें उसके बच्चों का भविष्य संवारना था, जो हो चुका, वह वापस नहीं हो सकता। विचार कर सकते हैं कि तीन पुत्रियों के पश्चात् पुत्र रत्न की प्राप्ति होना और उसके पश्चात् इस तरह की घटना हो जाना-खैर ।
'अनुशासन और अध्ययन एक सिक्के के दो पहलू है। इसीलिए मेरे पिता ने हम भाई-बहनों के लिए घर में एक नियम बना रखा था कि जो बड़े है। वह रात्रि 11:00 बजे तक और जो छोटे है वह रात्रि 9.30 बजे तक पढ़ाई करेंगे वह भी कुर्सी- मेज पर ही । हम बच्चे साथ-साथ एक ही स्थान पर रात्रि में पढ़ते थे। कभी-कभी पढ़ने में मन भी नहीं लगता था और नींद भी आने लगती थी; किन्तु समय पूरा करना हैं, मेज पर ही सिर रखकर चुपचाप पापा न आ जाये, इस डर के साथ झपकी मार लिया करते थे।
सत्य की राह ही सर्वश्रेष्ठ राह है, इसका भी पाठ उन्होंने हम लोगों को पढ़ाया और कहा कि सत्य के मार्ग पर चलते हुए परेशानिया तो आयेंगी किन्तु आत्मबल इतना प्रबल होता है कि हर स्थान पर सिर उठाकर बात कर सकते हैं। इसी के साथ किसी भी परिस्थित में हार न मानना और प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसग रहना है, अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुसार। पिता अपने बच्चों के लिए पृथ्‌वी पर साक्षात् ईश्वर का रूप होता है, इसी भावना से ओतप्रोत इस लेख में कर्मयोगी, ज्ञानयोगी के व्यक्तित्त्व को कम शब्दों में समेटने और अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
पत्रिका के उज्जवल भविष्य की आकांक्षी -
डॉ० सुमन रघुवंशी
बेटी
प्रोफेसर- संस्कृत-विभाग
टीकाराम कन्या महाविद्यालय,
अलीगढ

संघर्ष का सौंदर्य


रणवीर सिंह परिहार,
अपने आखिरी समय को रस्तोगी कॉलेज के सेवाकाल में मुझे संघर्ष की कठिन पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ा | संघर्ष से दो-चार होने के लिये मेरे पास अदम्य साहस और हद इच्छाशक्ति | आत्म बल का खजाना था। संघर्ष से मिली उपलन्धि ही वास्तविक आनंद का बोध करा सकती है, तथा अपने स्वाभिमान को जागृत कर सकती है | संघर्ष मनुष्य के प्रारब्ध और व्यक्तित्व को माँझ कर उसके लिये समृद्धि और सम्पन्नता लाता है। मुझे संघर्ष की और ले जानेवाली कुछ घटनायें इस प्रकार है-
1. स्वकेन्द्र परीक्षा प्रणाली के दौरान सन् 1993 की माध्यमिक शिक्षा परिषद, की परीक्षाओं में, जब में सह- केन्द्रव्यवस्थापक था, अनुचित साधन रोकने के एक प्रयास में कुछ अराजक तत्वों द्वारा मुझे अपमानित किया गया। मुझे इसका तनिक भी खेद नहीं है क्योंकि मैं अपनी जगह पर बिल्कुल सही था।
2. तत्कालीन प्रधानाचार्य को अवकाश पर चले जाने के कारण सन् 1995 की माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षाओं का दयित्वा केन्द्र व्यवस्थापक के रूप मुझे निर्वाह करना पड़ा। परीक्षाओं के मध्य में स्वामी आत्मदेव गोपालानन्द इण्टर कालेज अगरपुर के लगभग 2400 परीक्षार्थी हमारे परीक्षा केंद्र पर स्थानांतरित कर दिये गये। इन परीक्षार्थियों ने पहले ही दिन परीक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व विद्यालय प्रांगण प्रवेश करके तोड़-फोड़ करना प्रारम्भ कर दिया जिससे संस्था की सम्पत्ति को काफी क्षति पहुंची। भरे आत्मबल तथा जिला प्रशासन की सहायता से इस उपद्रव पर नियंत्रण पाना सम्भव हो सका । इस काण्ड ने जिला प्रशासन को हिलाकर रख दिया। मेरे लिये यह परीक्षा घड़ी थी। । इस घटना जनपद में मेरी पहचान बनायी |
3. तत्कालीन प्रबंध समिति द्वारा "विद्यालय के आंतरिक मामलों में अत्यधिक हस्तक्षेप (एड‌मीशन तथा प्रमोशन) को मैं बरदाश्त नहीं कर सका । इससे कुत्सित होकर मुझे निलंबित कर दिया गया। मुझे कठिनाइ‌यों का सामना करना पड़ा किन्तु प्रभु की कृपा से मेरी जीत हुयी। 4. काल चक्र में अराजक तत्वों या विद्यालय में एडमीशन तथा प्रमोशन के मामलों में हस्तक्षेप इतना बढ़ गया जो मेरी सहनशीलता के बाहर था। मुझे संघर्ष पर उतरना पड़ा और मैंने वही किया जो छात्रों एवं संस्था के हित में था। एक बार कुछ असामाजिक तत्वों ने मेरे निवास पर फाइरिंग थी । इन्हीं उपद्रवी तत्वों का समूह एक दिन विद्यालय के गेट को तोड़कर विधालय प्रांगण में प्रवेश कर आया । फर्नीचर तोड़ा तथा हम शिक्षकों साथ, मारपीट की | यह मेरा आत्मबल ही था जिसने मुझे साहस प्रदान किया और मैं उपद्रव पर नियंत्रण पा सका|
मेरा दिमाग बिलकुल स्पष्ट है। मैंने शंकाओं को कभी भी अपने दिमाग हावी नहीं होने दिया क्योंकि शंकाओं से भरा दिमाग कभी भी विजय पर मान केन्द्रित नहीं कर सकता। प्रभु ने मुझे सही और गलत का आकलन करने का विवेक दिया है। कुछ गलत हो जाने पर मैं पश्चाताप करता हूँ |